फखत इतनी शिकायत है
मुझे ऐ ज़िन्दगी तुझसे
गर तू मुझसे जुड़ी न होती
मुझको भी कोई टूटा ही सही
सितारा मिल गया होता
बा होश-ओ-हवास मैं आज
चीख चीख कर कहता हूँ
की तू कातिल है
हत्यारिन है
मेरी पलकों पे सजे उन नाजुक ख्वाबों की
जो कभी मुझे नींदों मैं हसाया करते थे
नहीं तो मैंने ऐ ज़िन्दगी , आज ज़मानो से तुझको
मुझको आसुओं के सैलाब मैं डूबते देखा है
सोचता था कमियाँ कुछ मुझमें ही हैं
नहीं तो , तू इतनी बेरहम भी नहीं है
जानती हो क्यों ?
क्योंकि मैंने औरों के साथ
तुझे हसकर मिलते देखा है
उनकी ही ताल पे ऐ -ज़िन्दगी
तुझको ताल मिलाते देखा है.
हाँ मैंने देखा है
तुझे उस खुदा के साथ
साजिशों की गुथियाँ
मेरे आँचल मैं गूथ्ते
वो तुम ही थी न , जिसको मैंने
बारिश के मौसम मैं
घर मेरा ही अछूते देखा है.
मेरा ही , सिर्फ मेरा ही .........
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete